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कृषि नवाचार

हैदराबाद में सब्जियों के अवशेष से बन रहा जैविक खाद, बिजली और ईंधन, पीएम मोदी ने की प्रशंसा

हैदराबाद में सब्जियों के अवशेष से बन रहा जैविक खाद, बिजली और ईंधन, पीएम मोदी ने की प्रशंसा

हैदराबाद की बोवेनपल्ली सब्जी मंडी आजकल खूब सुर्खियां बटोर रही है। यहां मंडी व्यापारियों की कोशिशों पर बेकार अथवा बची हुई अशुद्ध सब्जियों के उपयोग से जैविक खाद, बिजली और जैव-ईंधन निर्मित किया जा रहा है। भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी इसकी प्रशंसा की है। आजकल ऑर्गेनिक वेस्ट मैनेजमेंट अच्छी खासी आमदनी का स्त्रोत बनता जा रहा है। इसके चलते पर्यावरण को संरक्षण देने में भी विशेष मदद प्राप्त हो रही है। साथ ही, आजकल लोग ऑर्गेनिक वेस्ट के जरिए खूब मोटा मुनाफा कमा रहे हैं। यह किसान भाइयों के लिए एक उन्नति का जरिया बनता जा रहा है। आजकल हैदराबाद की बोवेनपल्ली मंडी के अंदर भी कुछ इसी प्रकार का ऑर्गेनिक वेस्ट मैनेजमेंट प्रोजेक्ट चल रहा है। यहां पर मंडी में बची हुई अथवा बेकार सब्जियों से हरित ऊर्जा बनाई जा रही है। बोवेनपल्ली मंडी में सब्जियों के अवशेष को उपयोग करके बिजली, जैविक खाद, जैविक ईंधन निर्माण कार्य चल रहा है। मंडी व्यापारियों के नवाचार एवं सफल कोशिशों से प्रभावित होकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने प्रशंसा की है।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस सराहनीय कार्य की खूब प्रशंसा की है

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने मन की बात कार्यक्रम में बोवेनपल्ली सब्जी मंडी के व्यापारियों के नवोन्मेषी विचारों की खूब प्रशंसा की है। पीएम मोदी ने बताया है, कि ज्यादातर सब्जी मंडियों में सब्जियां खराब हो जाती हैं, जिससे असुरक्षित खाद्यान हालात उत्पन्न हो जाएंगे। ऐसे में समस्या का निराकरण करने हेतु हैदराबाद की बोवेनपल्ली सब्जी मंडी व्यापारियों द्वारा इस अवशेष से हरित ऊर्जा निर्मित करने का निर्णय लिया गया है। यह भी पढ़ें: एशिया की सबसे बड़ी कृषि मंडी भारत में बनेगी, कई राज्यों के किसानों को मिलेगा फायदा मंडी में फल एवं सब्जियों के प्रत्येक औंस अवशेषों द्वारा 500 यूनिट बिजली एवं 30 किलो जैव ईंधन बनाया जा रहा है। यहां उत्पादित होने वाली विघुत आपूर्ति प्रशासनिक भवन, जल आपू्र्ति नेटवर्क, स्ट्रीट लाइट्स और 170 स्टाल्स को की जा रही है। साथ ही, ऑर्गेविक वेस्ट से निर्मित जैव ईंधन को बाजार में स्थित रेस्त्रा, ढ़ाबे अथवा व्यावसायिक रसोईयों में भेजा जा रहा है। यहां विघुत के जरिए मंडी की कैंटीन प्रकाशित की जा रही है। साथ ही, यहां का चूल्हा तक भी प्लांट के ईंधन के जरिए जल रहा है। जानकारी के लिए बतादें, कि बोवेनपल्ली मंडी में प्रतिदिन 650-700 यूनिट विघुत खपत होती है। उधर, प्रतिदिन 400 यूनिट बिजली पैदा करने के लिए 7-8 टन फल एवं सब्जियों के अवशेषों की जरूरत पड़ती है। यह मंडी के जरिए ही प्राप्त हो जाती है। इस प्रकार मंडी का वातावरण साफ-स्वच्छ और स्वस्थ रहता है। आज बोवेनपल्ली मंडी में स्थापित बायोगैस संयंत्र हेतु हैदराबाद की दूसरी मंडियों द्वारा भी जैव कचरा एकत्रित किया जाता है।

महिलाओं के लिए भी रोजगार के नवीन अवसर उत्पन्न हुए हैं

हैदराबाद की बोवेनपल्ली सब्जी मंडी में स्थापित बायोगैस प्लांट से वर्तमान में बहुत सारे लोगों को रोजगार का अवसर मिला है। यहां पर सब्जी बेचने वाले एवं अन्य लोग भी जैव कचरे को एकत्रित कर प्लांट में पहुँचाते हैं। साथ ही, प्लांट में पहुँचाए गए जैव कचरे की कचरे को अलग करने, कटाई-छंटाई करने, मशीन चलाने व प्लांट प्रबंधन का काम महिलाएं देख रही हैं। मंडी अधिकारियों के अनुसार, बायोगैस प्लांट में प्रतिदिन 10 टन अवशेष एकत्रित किया जाता है। यदि अनुमान के अनुसार बात करें तो इस अवशेष से एक वर्ष में 6,290 किग्रा. कार्बन डाई ऑक्साइड निकलती है। जो कि पर्यावरण एवं लोगों के स्वास्थ्य हेतु बिल्कुल सही नहीं है। इस चुनौती एवं समस्या को मंडी व्यापारियों ने संज्ञान में लिया है। इसका बायोगैस प्लांट को स्थापित करके संयुक्त समाधान निकाल लिया गया है। यह भी पढ़ें: पंजाब के गगनदीप ने बायोगैस प्लांट लगाकर मिसाल पेश की है, बायोगैस (Biogas) से पूरा गॉंव जला रहा मुफ्त में चूल्हा तेलंगाना राज्य की राजधानी हैदराबाद की इस बोवेनपल्ली मंडी में बायोगैस प्लांट को चालू करने का श्रेय जैव प्रौद्योगिकी विभाग एवं कृषि विपणन तेलंगाना विभाग, गीतानाथ को जाता है। यहीं बायोगैस प्लांट वित्त पोषित है। इस बायोगैस प्लांट को व्यवस्थित रूप से चलाने में सीएसआईआर-आईआईसीटी के वैज्ञानिकों का मार्गदर्शन शम्मिलित है। यहीं की पेटेंट तकनीक के माध्यम से बायोगैस संयंत्र की स्थापना की गई है।
सफेद बैंगन की खेती से किसानों को अच्छा-खासा मुनाफा मिलता है

सफेद बैंगन की खेती से किसानों को अच्छा-खासा मुनाफा मिलता है

अगर आप सफेद बैंगन की बिजाई करते हैं, तो इसके तुरंत उपरांत फसल में सिंचाई का कार्य कर देना चाहिए। इसकी खेती के लिये अधिक जल की जरुरत नहीं पड़ती। जैसा कि हम सब जानते हैं, कि प्रत्येक क्षेत्र में लोग लाभ उठाने वाला कार्य कर रहे हैं। 

उसी प्रकार खेती-किसानी के क्षेत्र में भी वर्तमान में किसान ऐसी फसलों का पैदावार कर रहे हैं। जिन फसलों की बाजार में मांग अधिक हो और जो उन्हें उनके खर्चा की तुलना में अच्छा मुनाफा प्रदान कर सकें। 

सफेद बैंगन भी ऐसी ही एक सब्जी है, जिसमें किसानों को मोटा मुनाफा अर्जित हो रहा है। काले बैंगन की तुलनात्मक इस बैंगन की पैदावार भी अधिक होती है। 

साथ ही, बाजार में इसका भाव भी काफी अधिक मिल पाता है। सबसे मुख्य बात यह है, कि बैंगन की यह प्रजाति प्राकृतिक नहीं है। इसे कृषि वैज्ञानिकों ने अनुसंधान के माध्यम से विकसित किया है।

बैंगन की खेती कब और कैसे होती है

सामान्यतः सफेद बैंगन की खेती ठण्ड के दिनों में होती है। परंतु, आजकल इसे टेक्नोलॉजी द्वारा गर्मियों में भी उगाया जाता है। कृषि वैज्ञानिकों द्वारा सफेद बैंगन की दो किस्में- पूसा सफेद बैंगन-1 और पूसा हरा बैंगन-1 को विकसित किया है। 

सफेद बैंगन की यह किस्में परंपरागत बैंगन की फसल की तुलना में अतिशीघ्र पककर तैयार हो जाती है। बतादें, कि इसका उत्पादन करने हेतु सबसे पहले इसके बीजों को ग्रीनहाउस में संरक्षित हॉटबेड़ में दबाकर रखा जाता है। 

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साथ ही, इसके उपरांत इसकी बिजाई से पूर्व बीजों का बीजोपचार करना पड़ता है। ऐसा करने से फसल में बीमारियों की आशंका समाप्त हो जाती है। 

बीजों के अंकुरण तक बीजों को जल एवं खाद के माध्यम से पोषण दिया जाता है और पौधा तैयार होने के उपरांत सफेद बैंगन की बिजाई कर दी जाती है। यदि अत्यधिक पैदावार चाहिए तो सफेद बैंगन की बिजाई सदैव पंक्तियों में ही करनी चाहिए।

सफेद बैंगन की खेती बड़ी सहजता से कर सकते हैं

जानकारी के लिए बतादें कि सफेद बैंगन की रोपाई यदि आप करते हैं, तो इसके शीघ्र उपरांत फसल में सिंचाई का कार्य कर देना चाहिए। इसकी खेती के लिये अत्यधिक जल की आवश्यकता नहीं पड़ती है। 

यही कारण है, कि टपक सिंचाई विधि के माध्यम से इसकी खेती के लिए जल की जरूरत बड़े आराम से पूरी हो सकती है। हालांकि, मृदा में नमी को स्थाई रखने के लिये वक्त-वक्त पर आप सिंचाई करते रहें। 

सफेद बैंगन की पैदावार को बढ़ाने के लिए जैविक खाद अथवा जीवामृत का इस्तेमाल करना अच्छा होता है। जानकारी के लिए बतादें, कि इससे बेहतरीन पैदावार मिलने में बेहद सहयोग मिल जाता है। 

इस फसल को कीड़े एवं रोगों से बचाने के लिये नीम से निर्मित जैविक कीटनाशक का इस्तेमाल अवश्य करना चाहिए। आपकी जानकारी के लिए बतादें, कि बैंगन की फसल 70-90 दिन के समयांतराल में पककर तैयार हो जाती है।